भुला हु रास्ता मयखानो की तरफ की यारो
कभी तलब जो हमें शराब की बेहतरीन लगती थी
सुनी सुनी है यार के बिन ये जमी और आसमा
कभी उसकी गली में ढलती साम बेहतरीन लगती थी
आँखे बरसती है उसकी एक झलक की खातिर
कभी बिन मौसम हुई बरसात बेहतरीन लगती थी
यादो के तोहफे जो दिए उसने नजराने समझकर
कभी उसके बातो की सौगात बेहतरीन लगती थी
अब तो खुलेयाम मिलते है वो हमसे ख्वाबो में अक्सर
कभी छुप छुप के मिलने की शुरुआत बेतरीन लगती थी
शरू होते थे मुशायरे उसकी उठती पलकों को देख कर
कभी उसकी झुकी पलकों के बीच ठहरी मुस्कान बेहतरीन लगती थी
कैसे कहु जाकर उसे की तनहा हु मै बहोत उसके बिना
कभी उसके साथ खायी कसमो की रात बेहतरीन लगती थी
जीना है नितेश एक इसी उम्मीद को लेकर उम्र भर अब
कभी उसके लिए मरजाने की बात बेहतरीन लगती थी