Saturday, November 10, 2018

इश्क़ कि डायरी से

हम तो थे इश्क़ कि गली के भटके हुए मुसाफिर
इस नाचीज को रास्ता दिखाया है इसने
जब मै फसा था इश्क़ के दलदल मे
तब इस दलदल को तालाब बनाया इसने

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इश्क के गम

 अपना गम किस किस से बोला जाए हैं कितनी परेशानियां इश्क़ में  इसे कैसे तौला जाए