हम तो थे इश्क़ कि गली के भटके हुए मुसाफिर इस नाचीज को रास्ता दिखाया है इसने जब मै फसा था इश्क़ के दलदल मे तब इस दलदल को तालाब बनाया इसने
अपना गम किस किस से बोला जाए हैं कितनी परेशानियां इश्क़ में इसे कैसे तौला जाए
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