Sunday, December 2, 2018

इश्क़ का दरिया

 दरिया है मेरी आँख में 
कतरा कतरा बहता है 
मै खुद में खोया रहता हु 
और तन्हाइयो का  कब्ज़ा  है 
उथला पुथला सब है और दर्द उठा है सीने में 
जब से गयी हो तुम मजा नहीं है जीने में 
सुकून की जो बारिश देती हो वो घटा खो गयी बदल की 
सब कुछ तो बर्बाद हो गया अब तेरी याद रह गयी सावन सी 
निकले है जो सुर मेरे उसमे तेरे प्यार का नगमा है 
मर मर के जो जीते है वो तेरे प्यार का सदमा है  

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इश्क के गम

 अपना गम किस किस से बोला जाए हैं कितनी परेशानियां इश्क़ में  इसे कैसे तौला जाए