Saturday, December 1, 2018

इश्क़ की डायरी से

 इंकार तेरा हर बार मुझे इकरार की वजह देता है
तेरा नाराज रहना मुझे प्यार की वजह देता है 
परेशा है सारी कायनात तेरे हुस्न के किस्सों से 
तेरा हुस्न कायनात को बहार की वजह है 

तमाम उम्र तुम्हे कित्ताबो में छुपा रखा था 
मगर तुम शायरी बन निकली तो लोगो ने शायर होने की सजा दी 
मैंने सिर्फ तुम्हारे बारे में लिखा था हर लफ्ज 
सब ने अपनी महबुबाओ को इनसे मुस्कारने की वजह दे दी 

बेकार की तकरार है की रूह मेरी हो जा मेरे जिस्म से गुजर कर 
मौजूद होने के लिए मेरे अंदर तो जाख ले मुझे जान ले 
तू जुड़ जाएगी कतरे कतरे से मेरे जिस्म से गुजर कर 

रोक रखा है कदमो को मेरी ओर आने से 
रोक रखा है जुल्फों को मेरे ऊपर बिखर जाने से
तू डरती नहीं खुदा से न ही तेरे जज्बातो से हालातो से  
तू डरती है बस ज़माने से   




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इश्क के गम

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